Wednesday, October 12, 2011

सियासी जंगल

राजनीती सिर्फ सत्ता में बने रहने का खेल है और इस खेल में ईमानदारी एक भ्रम| बदलते दौर की राजनीती एवं बदलते समाज में अत्यधिक सामंजस्य स्थापित हो चुका है, न राजनीती और न समाज ही किसी सभ्यता की बात करते हैं| आप और हम किसी जंगल में आ चुके हैं जहाँ सभी के हाथों में कालिख पुती है और सभी उससे अनभिज्ञ बने रह कर खुद को साधू सिद्ध करना चाहते हैं| अनुभव तो कुछ खास नहीं है किन्तु समझ एवं दृष्टिकोण के बल पर कुछ लिख पाया हूँ सो आप तक पहुँचा दिया - सियासी जंगल .....


सियासी जंगलों में कोई शेर नहीं होता है
मुर्दों का शिकार करे वो गीदड़ होता है
पेड़ नहीं होते, फ़कत नुकीली शाखें होती हैं
छांह का भरोसा देकर जो गहरी चुभा दी जाती हैं
पानी, हवा, ज़मीन सब पर चालें होती हैं
चल जाये कोई बिना पाँव तो बेचैनी होती है
न यहाँ पर कोई बात होती है न शुरुवात होती है
बस एक बाज़ी और किसी की शय पर घात होती है
इसे तमाशा न समझियेगा, ये खेल-कूद नहीं है जनाब
यहाँ पर हर कोई शातिर है, पहनता है बंदरों का नक़ाब
जंगल है, तो जानवर ही होंगे रास्तों पर साथ
आदमी मिल जाये तो, निश्चित, रास्ता भटक चुके हैं आप