इस पोस्ट में अपनी एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ | मै कोई कवी तो नहीं फिर भी कभी कलम, किसी भी तरह से, जो चली सो पेश है..........
पलट कर अपनी पीठ
मैं बैठा हुआ था
वो पीछे से आई
और किसी बच्ची-
की तरह
मेरी आँखों पर हाथ रख
उसने पूछा
बताइए मै कौन हूँ ?
मैंने डपटकर
अपनी व्यस्तता का बहाना
फिर रख दिया |
वो चली गयी ,
पीठ दिखाए , बिना पलते
मै सोचता रह गया
कि एक बार पलट न सका |
अगली प्रविष्टि में कुछ और भी अपनी अध्-भुनी लिखाई आपके सामने रखूंगा | फिलहाल प्रस्तुत कविता का शीर्षक देकर अपनी प्रतिक्रिया दें |
4 comments:
यह एक प्रेम कविता है. इसमें- आप को स्वयं ही पता नहीं है कि आप को उससे प्रेम है.
You have chosen white its ok. Much better than previous background.
i think its like opportunities comes to the person but he had quit at the last time...
I am not able to understand the meaning of this!!!!
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