So many question marks........................
One poem of Dr. Harivansh Rai Bachchan, very incisively describing the situation....
बहुत दिन बीते
१९ जनवरी १९६६
लाल घाँघरा,
काली कुर्ती,
काले सालू,
मोटे जूतों में
बांगड़ की
मेहनतकश, मज़बूत औरतें
सड़क बनातीं,
गिट्टी ढोतीं,
कोलतार के ड्रम गरमातीं,
कोलतार-भीगी गिट्टी को-गरम-
फावड़ों से फैलातीं |
कोलतार से काले
उनके हाथ हुए हैं,
कोई काली रेख घांघरे के ऊपर भी,
चेहरे पर भी |
बंधा हुआ मैले कपडे में
पेड़ तले रातिब रक्खा है,
जहाँ पड़े हैं उनके बच्चे
धुप-छांह में'
जिन्हें उन्होंने
थोड़ी सी अफीम देकर के
सुला दिया है'
कम कर सकें वे फुर्सत से|
खून-पसीने की रोटी
खानेवाली ये'
एडी से लेकर छोटी तक
मर-मेहनत में'
मार-थकावट में डूबी ये
नहीं जानतीं
इसके भी अतिरिक्त कहीं कुछ
दुनिया में होता-जाता है |
साधारण दिन आज नहीं है |
इनसे मैंने रूककर पूछा,
" क्या तुमको मालूम,
अचानक,
भारत के प्रधान मंत्री की
मृत्यु हो गई, ताश्कंद में?"
"हाँ मालूम-लगो थो मेलो !"
"क्या तुमको मालूम
कि मंत्री नया चुना जाने वाला है ?-
ठीक इस समय, लोग हजारों
घेरे संसद भवन खड़े हैं,
घर-बैठे रेडियो लगाए,
बाहर वाले ट्रांसिस्टर लटकाए, खोले,
घिरे दस-पांच जनों से
जगह-जगह पर-
लोग कान ही कान हो रहे,
मंत्री होते हैं मुरार जी
या की इंदिरा गाँधी होतीं ?-
बदल रहा मंत्रित्व देश का ;
और तुम्हें कुछ खबर नहीं है |
और ना तुममें इसे जानने की
उत्सुकता !
तुम भी क्या हो !"-
"साहब, हमारो
ठेकेदार नईं बदलो है !"
"साहब, बड़ो जालिम हकाम है !"
"साहब, उसे बदलो तो जानैं !"
खड़ा रहा मैं
किन ख्यालों में खोया-खोया !-
चली गयीं वे इतना कहकर,
ड्रम लुढकाने,
गिट्टी लाने,
सड़क बनाने,
कल का रातिब आज कमाने |
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