उम्र के चालीसवें पड़ाव पर खड़ी एक महिला जिसने रसोई के सिवा दुनिया ना जानी हो और चूल्हे के सिवा कोई सुख, अपने जवान होते लड़के में अपनी सारी ज़िन्दगी को पाती है| खुद न पढ़ पाने कि लज्जा के साथ जब वो अपने पढ़े-लिखे लड़के से कोई सवाल पूछती है तो उसके चेहरे पर भय होता है| और उत्तर कि जगह झिड़की मिलने पर मन के उपरी तल पर यदि दुःख हो भी, लेकिन, अन्दर तो बेटे के पढ़ जाने का सुख ही होता है| आधी रात को जब दिल बैठने-सा लगता हो, साँस भी दम घुटाती हो तब आँख से बहता पानी किस दर्द, किस सच, किस व्यथा, किस कहानी को कहता है ? न मालूम| पर हर औरत की यही नियति होती है जिसे वह अपनी संतान में बदलता देखती है| रुंधे गले से जब एक लाचारी भरी आवाज़ में कुछ बिखरे हुए बोल सारे जीवन के संघर्ष और जटिलताओं का मर्म कहते हैं तब भविष्य की ओर ताकती आँखों ओर सबसे बलवान उम्र के दाब में वह आवाज़ सुनी भी ना जाती हो, किसी मन को छू भी ना पाती हो, फिर भी अनपढ़ माँ का ह्रदय अपने बेटे के सामने कुछ कह लेने भर के एहसास से संतोष से भर जाता है| माँ 'भैया' बुलाती है पर लाट साहब सुनते कहाँ? दूर देश से लौटे अपने बेटे के क़दमों की आहट में सारी दुनिया के वैभव की खटखटाहट पाती है अनपढ़ माँ| जिसे जना, जिसे लायक बनाया, उसके बेइज्ज़त कर देने पर भी, अपने बेटे के लिए गर्व महसूस करती है अनपद माँ| चंद टुकड़े कागज़ बटोरकर, कुर्सियाँ तोड़ते वो बेटे कितने कमअक्ल हैं उस अनपढ़ माँ के आगे, जो आज भी गूँगे ओर घिसटते लड़कों को आग से 'ताता' कहकर बचाती है|
5 comments:
beautiful.........
very nice and touchy storey
too gud.... :)
बहुत अच्छा लिखते हो ...मर्मस्पर्शी और यथार्थ के धरातल के ekdam kareeb lagi yah रचना..
keep writing...
Touching!
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