Monday, June 14, 2010

"भोपाल की बिलखती आत्मा "

ज़हरीली गैस को सूंघकर मौत की भेंट चढ़े भोपालवासियों की दफन लाशों में एक कौतुहल-सा मच गया है | सभी उठकर अदालत और भारत सरकार को बधाई देने के लिए कूच कर चुकी हैं | अंततः अब वे चैन से अपनी कब्रों में सो सकेगीं | उन्हें  अब न अदालत जाना होगा और ना ही अपनी आपबीती की गवाही देनी होगी | उन्हें न्याय मिल चुका है और उनके दोषियों  को सजा | किन्तु कल रात जो वाकया मेरा साथ घटा मै अभी तक डरा और सहमा हुआ हूँ | दिन की तेज गर्मी के बाद रात जब हवा में नमीं और ठंडक हुई तो घूमने निकल गया | पर कुछ सौ कदम चलने के बाद सघन अँधेरा छा गया और किसी महिला की चीख-पुकार और सिसकियाँ  सुनाई देने लगीं | कुछ तफ्तीश के बाद सड़क किनारे , एक पेड़ के नीचे सुर्ख लाल कपड़ों में बैठी एक महिला मिली | मेरे पूछने पर उसने अपना परिचय दिया "मै भोपाल की आत्मा हूँ"  | मै स्तब्ध रह गया और अभी तक वह चीख मुझे खुद को धिक्कारने पर मजबूर कर रही है |




भोपाल नगर की आत्मा ने अपनी बात मुझसे कुछ यूँ कही - " सन १९८४, तारीख ३ दिसंबर, मै अपनी सुन्दरता की रूमानियत में खोई बैठी थी कि कहीं से आवाज़ आई ....गैस रिस रही है , बचने के लिए ज़मीन पर लेट जाओ.........| मै भी लेट गई और बच गई | और आज अपने बच जाने का अभिशाप भुगत रही हूँ | मै अपने नगरवासियों की पीड़ा नहीं देख सकती सो भटक रही हूँ | न जाने कितने मरे और कितनों को जानलेवा बिमारियों ने घेरा | कितने छोटे बच्चे अपनी साँस के साथ ज़हर लेने के कारण अपनी जान गवां बैठे | उस ज़हर के मालिक जानते थे कि मेरे नगर को खतरा है, मेरे रहनुमा, मेरे प्रशासक भी जानते थे पर सब जानते-बूझते उस ज़हर को सहेजा गया, संभाला गया और बढाया गया फिर यूँ ही बहा दिया गया..........मौत नहीं मौत का सैलाब आया फिर......हर तरफ चीख और मातम पसर गया | जो होना था हो गया | उजाड़ हो गया नगर | कलंक लग गया मुझ पर इतने मासूमों को मारने  का | सजा मिलनी चाहिए मुझे | मै भटकती रहूंगी ऐसे ही, बिना किसी ठोर-ठिकाने के .......मै नहीं लौट सकती भोपाल पर......ज़रूर बदला लूंगी भोपाल के कातिलों से | अभी न्याय अधूरा है | "
और कई सारी बातें करते हुए वह बिलख पड़ी फिर से | मै आत्म-ग्लानी से भर गया  क्यूंकि क्या कर पाया था मै अब तक, उन बदकिस्मत लोगों के लिए जो कुछ लोगों के लालच, लापरवाही, मक्कारी और स्वार्थ का शिकार हुए थे | हजारों लोग जीवन भर के लिए अपंग हो गए, महोताज हो गए जीने के लिए | वास्तव में भोपाल के दोषी हम सभी हैं | वो सारी  सरकारें हैं जो इस दौरान सत्ता में आई, वो प्रशासक हैं जिन्होंने अपने हितों को  ऊँचा रखा, वो व्यवस्था है जो इस नरसंहार का आधार बनी और अंततः स्वयं हम दोषी हैं..........हर एक भारतीय दोषी है जिसने इतनी बड़ी त्रासदी को भुला दिया और आज जब न्याय का नाम लेकर पीड़ितों को छला  गया है ....उनके मुहं पर करारा तमाचा मारा गया है तब हमें याद आई है उनकी और हमारी झूठी हमदर्दी दे रहे हैं  उन्हें | अदालतें उन लोगों को न्याय नहीं दे सकतीं जो आज से २६ साल पहले मर चुके हैं या जो विक्षिप्त और अपंग हो चुके हैं | उन्हें न्याय हमारी संवेदनाएँ  दे सकती हैं | हमारी शुरुवात दे सकती है | देर तो बहुत हो गई पर भोपाल को आज भी हमारा सहारा चाहिए, वक़्त रहते कन्धा तो ना दे पाए पर आज जब उसको पुनः जन्म देने का अवसर है तो क्यूँ पीछे हटा जाए |

4 comments:

Amit Khanna said...

I Want to Share this Page with Dr.Manmohan Singh, but i don't find him on fb. Please Help.

Priyank Jain said...

Please sir !!! Prime Minister should be more concerned about this.

RAVINDRA VIKRAM said...

hhmmm

Manish Kumar said...

aapke dwara vyakta vicharon se poorna sahmati hai.