Friday, July 2, 2010

फुरसती ज्ञान

गाँव भी अब फाईव-स्टार हो रहे हैं | शहरी विकास की चकाचौंध में कब गावों की मासूमियत और सहजता खो गई पता ही नहीं लगा | खेतों में हार्वेस्टर और ट्रेक्टर और किसानों के घरों के आगे खड़ी महँगी गाड़ियां भारत उदय की तस्वीर हैं या झूठा आभास, है तो खैर समझ से परे पर गांव समृद्ध हुए हैं इसमें कोई संदेह नहीं | यह कोई कहने की बात नहीं अपितु हम सभी के समझने की बात है कि आज कि संभ्रांत और विकसित सभ्यता के आधार में हमारी सहजता और संवेदनाओं की कब्र हैं | थ्री-डी और थ्री-जी की असीमित क्षमता ने हमारे एयर-कंडीशंड, आलिशान कमरों तक पनघट की हाई-डेफिनेशन तस्वीर तो पहोंचा दी है पर अविरत बहती नदियों का कल-कल और नीर का निर्मल स्पर्श इतहास हो गए हैं | पनघट पर पानी भरती महिलाएं और जंगलों में दौड़ते चरवाहे माइनोरिटी में आ गए हैं | उन्हें देखना भी यदि पर्यटन का हिस्सा माना जाये तो आश्चर्य नहीं क्यूंकि कुछ ही स्पेशल-झोन्स होंगें जहाँ ये प्रजाति मिलें | हाई-टेक हुए देहात में टेप-वाटर ने बड़ी धूम मचाई है |

दिमागों में निजता का कैसा विकिरण उत्पन्न हुआ है की पड़ौसी की मौत की खबर उसकी बरसी पर लग जाये तो खैर | आर्थिक विकास ने जीवन के मायने ही बदल दिए हैं | हम-आप बात नहीं करते पर घंटों किसी ऐसे आदमी से चैट करते हैं जिसे न कभी देखा और कभी तो उसके होने पर ही शक होता है | जैसे दुनिया सिकुड़ी है उसी अनुपात में आदमी की विचार-शैली एवं मानसिक वृत्त भी संकीर्ण हुआ है | गावों की चौपालें, हंसी-ठिठोली, मान-मनुहार कहाँ गए तो पता नहीं ? शहरों का अपना मिजाज़ है, मेट्रो में सफ़र करने वाले आज की नहीं कल की फ़िक्र में हैं, मेडिकल बीमें और लाइफ इंश्युर्ड करवाई जा रही है ; मज़ाक देखिये लोग मौत की ग्यारंटी ले रहे हैं |
मेरा विरोध न शहरी विकास से है और न ही गावों की समृद्धि से, मेरा आशय तो केवल मनुष्य से है और ख़त्म होती जा रही मानवता से | भारतीय गांव आत्म-निर्भरता का प्रतीक हैं और शहर अव्यवस्था और संघर्ष का, यही कारण है कि अक्सर हम गांव और शहर का उदाहरण ले कर दो विचित्र और भिन्न जीवन-शैलियों की चर्चा करते हैं | बढे हुए विलासिता के साधन यदि विकास हैं तो क्या मानसिक शांति और संतोष की  कीमत पर नहीं ? अपनी सभ्यता को ख़त्म करने के साधन जुटा लेना क्या विकास है ? ऐसे अनेकों प्रश्न हैं और अनेकों उत्तर किन्तु न तो कोई प्रश्न पूछता है और न ही उत्तर दिए जाते हैं | आज का सोफिसटीकेटेड समाज चुप रहना और अपना काम करना बेहतर समझता है | हम सभी के जीवन में कुछ उद्देश्य है किन्तु उद्देश्य जीवन का अर्थ नहीं; जीवन का अर्थ उसे जीने में है | अपने मित्र की यदि बिन मांगी सलाह मानें तो अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय जीने के लिए भी निकालें | अपनें मित्रों के साथ, परिचितों के साथ अपनी संवेदनाएँ बाटें और कुछ पल के लिए ही सही सहज हों और अपनी चुप्पी तोड़ें |

4 comments:

Mayank Sharma said...
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Mayank Sharma said...

bharat is being overshadowed by shining India ... very nice post ... different concept and subject

Anonymous said...

Bahut Khoob ... आगे खड़ी महँगी गाड़ियां भारत उदय की तस्वीर हैं या झूठा आभास, .... you had it...

Manish Kumar said...

"पनघट पर पानी भरती महिलाएं और जंगलों में दौड़ते चरवाहे माइनोरिटी में आ गए हैं |हाई-टेक हुए देहात में टेप-वाटर ने बड़ी धूम मचाई है |"

ye khushi ki baat hai agar aisa sare bharat mein ho jaye. halanki ye isthiti bharat ke kuch hi hisson mein hi aa payi hai.

Aur sabse badi baat ka inka post ke mool uddeshya manveey moolyon ke hraas se kya lena dena hai?

मेडिकल बीमें और लाइफ इंश्युर्ड करवाई जा रही है ; मज़ाक देखिये लोग मौत की ग्यारंटी?? ले रहे हैं |

Mout ki guarantee ya vridhavastha mein beemar padne ke liye arthik sambal ka ek tareeka, aur achanak vipatti aane se jeevan ki suraksha, ye dekhne ke dhang pe nirbhar karta hai.Aur ek baar phir agar log aisa kar bhi rahe hain to ismein tumhein kaun sa mazaak dikh raha hai.


मेरा विरोध न शहरी विकास से है और न ही गावों की समृद्धि से, मेरा आशय तो केवल मनुष्य से है और ख़त्म होती जा रही मानवता से

jaankar santosh hua par lekh mein pesh kiye kayi udhaharan khaskar gaanvon ke paipekshya mein kuch khas prabhav nahin chhodte.

Waise bhi bharat ke ek bahut bade hisse mein gaanvon ko pani aur bizli to naseeb hi nahin hai . Kya main jaan sakta hoon ki tumne kitne gaanvon (Punjab aur western UP chhod kar) ko khud 5 star hote dekha hai ?