Saturday, November 20, 2010

दोस्त

तीसरा सेमेस्टर भी पूरा हो गया, हॉस्टल लाइफ और मस्तियाँ, ये दुनिया एक पाठशाला है और हर शख्स पढ़ानेवाला | बहुत कुछ सीखने मिला, बहुत कुछ जानने मिला,.....कुछ लोगों को पढ़ा, कुछ खुद को...... कुछ बदले और कुछ दूसरों को बदलने की आरज़ू रही..... पता नहीं किन नीतियों का पालन किया और कौनसी शैली से समय गुज़ारा..... पढ़ा भी नहीं भी... बढे भी... लडखडाये भी.... यहाँ से संपर्क टूटा रहा पर ज़िन्दगी से लगाव ज़रा गहरा हुआ.... कुछ यूँ ही बैठे-बैठे याद किया तो जो निकल कर आया वो लिखा है आशा है पढने वाले पसंद करेंगे..... लिखने को और बातें करने को बहुत कुछ है पर क्यूंकि अवकाश प्रारम्भ हो चुके हैं सो घर जाने की तैयारी भी लगानी है .... शेष फिर कभी,,,!!!!!!!


घर नहीं रहा अब, उस आग में सब धुआं हो गया
कौन पहोंचा, न जाने किस पानी से आग बुझाने वहाँ  

दोस्त कहते थे वो, आज दूर खड़े हँस रहे हैं 
दुश्मनों से नाराज़गी का सिला शायद यही होता है

रेत की तरह फिसल गया सब कुछ हाथ से
आज तक होश नहीं वो कैसा हाथ मिलाया था 

आँख बंद कर बैठा ,सच को झुठलाने का बहाना सही
 उन आग की लपटों में जो जला वो कितना सच था 

2 comments:

नया सवेरा said...

... bahut sundar .... shaandaar post !!!

Mridhula Ramesh said...

So true!
So much we got to learn in the third semester...so much self analysis and that of those around.
The attachment to the place has started growing so much that I fear to think of the day when I would have to leave the place!