Monday, March 22, 2010

my pen

इस पोस्ट में अपनी  एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ | मै कोई कवी तो नहीं फिर भी कभी कलम, किसी भी तरह से, जो चली सो पेश है..........

पलट कर अपनी पीठ
मैं बैठा हुआ था
वो पीछे से आई
और किसी बच्ची-
की तरह
मेरी आँखों पर हाथ रख
उसने पूछा
बताइए मै कौन हूँ ?
मैंने डपटकर
अपनी व्यस्तता का बहाना
फिर रख दिया |
वो चली गयी ,
पीठ दिखाए , बिना पलते
मै सोचता रह गया
कि एक बार पलट न सका |

अगली प्रविष्टि में कुछ और भी अपनी अध्-भुनी लिखाई आपके सामने रखूंगा | फिलहाल प्रस्तुत कविता का शीर्षक देकर अपनी प्रतिक्रिया दें |

4 comments:

मुकेश जैन said...

यह एक प्रेम कविता है. इसमें- आप को स्वयं ही पता नहीं है कि आप को उससे प्रेम है.

Manish Kumar said...

You have chosen white its ok. Much better than previous background.

Unknown said...

i think its like opportunities comes to the person but he had quit at the last time...

Unknown said...

I am not able to understand the meaning of this!!!!