Friday, March 19, 2010

a Jain monk,Shri Kshamasagarji


His unequalled asceticism and progressive vision makes him the most beloved and reverend saint amongst the Jain community and whoever comes under the bounty of him(specially,youth).The Young Jaina Award , which he ignited has now become the most famous and desired award by the Jain students to whom it is given.The scholarship program for the economically weak students is also appreciable.Besides this he writes beautyfull poetries which include the chirping sparrow,blossoming trees,wavy sea and everything which we are bestowed by nature but very finely they turn the reader towards self-introspection.There is one group of his disciples Maitree Samooh, this works for the social welfare and manages the various programs under the guidance of Munishri.Presently, he is ill, I pray to god for his fast recovery.

Below, an introduction of him has given which is from his one of the books.

"अभी मुझे और धीमे / कदम रखना है /अभी तो चलने की / आवाज़ आती है |" अपनी साधना-यात्रा में ऐसा सूक्ष्म आत्मालोचन करनेवाले संत-कवी क्षमासागरजी अपनी अनुभूतियों की काव्याभिव्यक्ति एवं अपनी सूक्ष्म टिप्पणियों में ऐसा कुछ कह जाते हैं, की पाठक, भावविभोर होते-न-होते विचारोद्वेलित हो उठता है| अत्यंत कोमलता के साथ, वे मनुष्य की संसारिकता को दर्पण के सामने सरका देते हैं| पाठक बिम्ब-प्रतिबिम्ब में स्वयं को पाकर, कवी पर रीझता हुआ विचलित हो उठता है|
मनीषी कवी, चिन्तक एवं विज्ञानविद मुनि श्री क्षमासागर दिगंबर वीतरागी मुनि हैं| सागर के एक संभ्रांत ,धर्मनिष्ठ एवं सुसमृद्ध परिवार में जन्मे वीरेन्द्र कुमार ने, सागर विश्वविद्यालय से भूगर्भ विज्ञान में एम.टेक. की उपाधि प्राप्त कर, तपोनिष्ठ आचार्य श्री विद्यासागरजी के आध्यात्मिक आलोक में, अपनी अविवाहित युवावस्था में, गृह त्यागकर दीक्षा अंगीकार कर ली थी| वीरेन्द्र कुमार ने नया नाम पाया था, क्षमासागर| ग्रहस्थावास्थ में आप घर भर के लाडले थे| जीवन में न कहीं निराशा थी, न हताशा| न ही कोई असफलता,न कोई विरक्तिप्रेरक कटु प्रसंग| स्वेच्छा और स्वप्रेरणा से आत्मकल्याण की और आप प्रवृत्त हुए थे |
वीतरागी मुनि के जीवन और चर्या ने उन्हें ऐसे प्रभावृत्त से मंडित कर दिया है, कि उनका प्रथम श्रेणी का कवी-व्यक्तित्व, दूसरी पंक्ति में कहीं बैठा मिलता है| कविता का संसार उनकी भी प्राथमिकता नहीं है, पर उनकी प्रतिभा में कविता ऐसी समाई है कि वह अप्राथमिक बन जाने पर भी, उनकी अभिव्यक्ति को समृद्ध करती हुई, पाठक को कभी भावविभोर,कभी उद्वेलित और प्रायः आत्मालोचन कि और प्रवत्त करती हुई, उससे ऐसा सम्बन्ध बना लेती है, कि वह उससे बन्ध जाता है| अंतःकरण को विस्तार देते हुए उनकी कविता, पाठक के मन का परिष्कार करती है |
 (द्वारा:प्रोफेसर सरोजकुमार, 'मै तुम्हारा हूँ' 'से साभार)

पीड़ा
जाने कब किसने जंगल में
आग लगा दी होगी-
वृक्ष झुलस गए
 पत्ते सब जल गए
और नीचे उग आई घास
सहम कर काली पड़ गई थी |
पत्र-विहीन, पक्षियों की
चहचहाहट से रहित,
शून्य में ताकते वृक्ष
और गहरा सन्नाटा |
कितनी सघन होगी
उनकी अनकही  पीड़ा
मैं सोचता रहा
और सोचता ही रह गया |

Read more poetries of Muni Shri Kshamasagarji in next posts
(visit maitree samooh's webpage: http://www.maitreesamooh.com/)

2 comments:

Kritika Jain said...

I'm very inspired from your post' ....

Priyank Jain said...

nice to know,do read the books of Muni Shri,list you can have from the website of maitree samooh,link has also been given