Thursday, March 11, 2010

my first radio-speech

though a bit incomplete here but recorded full,may considered as a budding orator's effort-my first recording in ALL INDIA RADIO and below is my speech..........the experience was great with program coordinator Mr. Rajput.Here have tried to put a simple explanation of complex nuclear reaction.Read it before going to "123" deal and listen it on 31st march 2010 at 5:30 pm........
"विज्ञान की उपलब्धियों में से एक है-नाभिक विज्ञान-वस्तुतः यह नाभिक के मौलिक-अंशों और व्यवहार का अध्ययन है,जिसे नाभिक-भौतिकी भी कहा जाता है| इसकी उपयोगिता बहुधा ऊर्जा और सैन्य क्षेत्र में ही समझी जाती रही है किन्तु अन्वेषणों से इसके विस्तीर्ण उपयोगों का पता चला चुका है, जिन्हें व्यवहार में भी लाया जा रहा है| ऐसे ही कुछ क्षेत्र हैं-चिकित्सा, जिसमें की न्यूक्लिअर दवाओं,कैंसर के लिए प्रयुक्त रेदिएशन्स,मेग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग प्रचलित हैं, द्रव्य-अभियांत्रिकी एवं पुरातत्व| वर्तमान में ऊर्जा-सवरक्षण एवं सवर्धन पर अधिका-धिक् जोर दिया जा रहा है| ऐसे में नाभिक-ऊर्जा एक विकल्प के रूप में कुछ देशों में पहले से ही प्रयोग में है और इस पर अभी भी अनुसंधान लगातार जारी है| इसी कारण ऊर्जा के इस स्रोत की समझ अनिवार्य हो गई है|
इस क्षेत्र का इतिहास भी रोमांचक एवं लाक्षणिक है|अणु के पश्चात् परमाणु का अस्तित्व 'जे-जे थॉमसन' द्वारा एलेक्ट्रोंन कि खोज के बाद पहली बार चिन्हित हुआ| बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में भौतिकविदों ने अल्फा,बीटा और गामा रेडिएशन का पता भी लगा लिया| वर्ष १९०५ में अल्बर्ट आइंस्टीन ने तत्व-ऊर्जा सद्रश्ता का सूत्रवार वर्णन प्रतुत किया| इससे बेक्क्येरल एवं अन्य वैज्ञानिकों द्वारा रेडियोएक्टिविटी पर जारी अनुसंधान को भी मदद मिली| १९११ में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने नाभिक की खोज की| और वर्ष १९३२ में जेम्स चेडविक द्वारा नेयुटरोंन की खोज के पश्चात अणु की सर्वमान्य संरचना सामने आई|इसके अनुसार अणु के मध्य में न्युक्लिअस अर्थात नाभिक होता है जिसमे धनात्मक चार्ज वाले प्रोटोन और बिना किसी चार्ज वाले न्युटरोंन होते हैं और इसके बहार नियत-ऊर्जा घेरों में रिडात्मक चार्ज वाले इलेक्टरोंन चक्कर लगाते हैं| बाद की व्याख्याओं से नाभिक-बल का ज्ञान हुआ जिससे समान चार्ज वाले प्रोटोन न्युक्लिअस में स्थाईत्व से रहे आते हैं| यहाँ रेडियोएक्टिविटी की प्रक्रिया भी जान लेना उचित है| इस ह्रास प्रक्रिया में अस्थिर आणविक-नाभिक-ऊर्जा एवं कणों का निस्तार करते हैं|इसका आविष्कार १८९६ में हेनरी बेक्क्येरल ने किया|वर्तमान में नाभिक-भौतिकी को जिस विकसित रूप में हम देख रहे हैं,उसका श्रेय जाता है इसके जनक एनरिको फ़र्मी को जिन्होंने वर्ष १९३४ में कृत्रिम नाभिक-संयंत्र बनाया और सफलता पूर्वक उसका क्रियान्वन भी हुआ| नाभिक संयंत्र चर्चा में जितनी सहजता से कहा जा सकता है उतना ही कठिन उसका क्रियान्वन है|अत्यधिक विषम परिस्थितयों में कोई नाभिक प्रक्रिया घटती है और जो ऊर्जा मानव कल्याण के लिए प्रयुक्त होना है वह सिर्फ एक गलती के कारण उसका सर्वनाश करने में भी सक्षम है| दो प्रकार की नाभिक प्रक्रियाएँ होती हैं-पहली है फिशन और दूसरी फ्यूशन अर्थात विभाजन एवं समायोजन|न्यूक्लिअर फिशन वह नाभिक प्रक्रिया है जिसमे अणु अपने से छोटे अणुओं में विभाजित होता है, और किरणें,बहुत से छोटे कण और बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है|वहीँ न्यूक्लिअर फ्यूशन छोटे अणुओं के समायोजन से बड़े अणु के बनने की प्रक्रिया है किन्तु इसे प्रारंभ करने में बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है फिर उतनी ही अधिक ऊर्जा उत्पन्न भी होती है|येही प्रक्रिया तारों और उन्हीं में से एक हमारे सौरमंडल के केंद्र सूरज में ऊर्जा का कारण है| अव्यवहारिक विकल्प होने की वजह से इसका कोई उपयोग नहीं है किन्तु इस पर अन्वेषण सतत चल रहा है|न्यूक्लिअर फिशन में उपयुक्त द्रव्य अर्थात ईंधन का बड़ा महत्त्व है| न्युटरोंन से टक्कर पर प्रारंभ होने वाली इस प्रक्रिया में ऐसे द्रव्य प्रयोग में लाये जाते हैं जो फलस्वरूप न्युटरोंन को जन्म दें, जिससे की नाभिक प्रक्रिया की स्व-स्थिर एवं स्व -चालित श्रंखला प्रारंभ हो सके| जो संयंत्रों में नियंत्रित ऊर्जा और अस्त्रों में अनियंत्रित एवं भयावह ऊर्जा की कारक है| नाभिक-ईंधन की कोई मात्र में उतने ही मात्र के किसी पदार्थ से दस लाख गुना अधिक शक्ति होती है| उपयुक्त ईंधन को विभाज्य-ईंधन भी कहा जाता है| प्रायः युरेनियम-२३५ एवं प्लूटोनियम-२३९ का प्रयोग ही इस ईंधन के रूप में होता है|
युरेनियम एक श्वेत धातू है| इसमें प्रोटोंस की संख्या ९२ होई है| और न्युटरोंस की संख्या प्रायः १४३ और १४६ होती है| युरेनियम प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थों में दूसरा सबसे भारी पदार्थ है| इसका व्यवसाइक निस्सारण युरानिते( uraninite ) जैसे खनिजों से किया जाता है| युरेनियम का क्षरण बहुत धीरे होता है, यु-२३५ की हाफ-लाइफ ७०४ मिलीओंन वर्ष होती है| युरेनियम का आविष्कार वर्ष १७८९ में मार्टिन हेनरिच ने किया| जिन्होंने इसका नाम युरेनस गृह के नाम पर रखा| नाभिक-ऊर्जा संयंत्र में युरेनियम के प्रयोग से पहले उसका शोधन किया जाता है अर्थात ईंधन में युरेनियम की मात्र को बाध्य जाता है जिस प्रक्रिया को एनरीचमेंट ऑफ़ फ्यूल कहा जाता है|
युरेनियम के संपर्क में आने से गुर्दों,दिमाग,जिगर और ह्रदय की सामान्य क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है|
नाभिकीय ऊर्जा संयत्र की रचना भी लाक्षणिक होती है| जिसके सभी अंग महत्तवपूर्ण होते हैं| एस संयंत्र में ही नाभिकीय प्रक्रिया की श्रंखला प्रारंभ,नियंत्रित एवं सतत क्रियान्वित होती है| इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग विद्युत् उत्पादन है और जहाज़ों में भी अब नाभिकीय ऊर्जा का प्रयोग होने लगा है| एन संयंत्रों के मुख्या अंग हैं रेअक्टोर,फ्यूल-रोड्स,मोडरेटर,कण्ट्रोल-रोड्स,कुलांट और turbine |
रेअक्टर में धीमी गति का न्युटरान जैसे ही यु-२३५ से टकराता है नाभिक प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और तीव्र गति के न्यूट्रान निकलते हैं जिनकी गति धीमे करने के लिए माडरेटर होता है( graphite powder ). कण्ट्रोल रोड्स का काम न्यूट्रान की गति नियंत्रित करना होता है| एस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा से भाप बनती है और वो turbine को चलती है जिससे नाभिक की ऊर्जा विद्युत् में परिवर्तित होती है|"

1 comment:

Unknown said...

see the topic `1927` solvay conference for more information regarding this bolg..