Thursday, March 25, 2010

kuch aur......peshgi

पिछली पोस्ट में जो कविता लिखी, उस पर तो पढने वालों ने प्रेम कविता का तमगा लगा दिया| खैर आशा है कुछ ऐसी वास्तविकता भी हो जाये, फिर बुरा भी क्या है अभियांत्रिकी के विद्यार्थी जो ठहरे!!!!!!!
चलिए ये तो हुआ मेरे सबसे खास दोस्त को उत्तर पर आज जो कुछ कविताएँ इस पोस्ट में हैं वो अलग-अलग मूड की हैं| पहली मैंने २६/११ के बाद लिखी थी जो स्कूल से राष्ट्रपतीजी को भेजी गयी थी| अब कितनी खास आपको लगी ये भी देख लेते हैं| उसके बाद दो  कविताएँ मौत पर हैं, कुछ ऐसा तो घटा नहीं जो मौत पर लिखता पर अपने  कुछ एकांत क्षणों में ऐसी रचनाएँ शायाद होही जाया करती होंगी| कॉलेज में दोस्तों से चर्चा में कुछ ऐसा प्रसंग निकला कि अपनी कविताएँ आपके  समक्ष रखने की भूमिका बन गई| कविताएँ आप पढ़ें उससे पहले कुछ चर्चा करली जाये...
वैसे मै बातचीत करने का बहुत शौक़ीन हूँ पर पढना और लिखना भी पसंद करता हूँ सो ब्लॉग्गिंग एक जरिया कह लीजिये जो मुझे मिला कुछ अपना पढ़ा, कुछ लिखा, कुछ सुना, कुछ कहा सबसे बाटने  के लिए|
हो सकता है शायद मेरी भाषा साहित्यिक दृष्टि से अपरिपक्व हो, मेरे विचार अव्यवहारिक हों और कुछ जो ब्लॉग और पोस्ट में अंग्रेजी और हिंदी की अदली-बदली है, वो भी कुछ बेहतर प्रभाव न डालती हो पर अब यदि भाषा पर ध्यान दूं तो भाव खो जायेंगे और इसलिए मैंने half -baked नाम चुन कर सबकी शिकायतों के लिए क्षमा भी मांग ली है और स्वीकार भी कर लिया है कि मै एक विद्यार्थी हूँ| पर ये तो सभी मानेगें कि अपनी तारीफ सुनकर पेट फूल जाता है, सो यहाँ कमेंट्स में किसने तारीफ की ये जानने के लिए मै बड़ा बेचैन हो उठता हूँ......सो ये भी अनोरोध  सही कमेंट्स ज़रूर किया करें, भले बुराई ही क्यूँ न हो|
अब और क्या कहा जाये,...कुछ पोएम्स पढ़ लीजिये अगली बार कुछ रोचक किस्सों के साथ मिलेंगे "किस्सा-गोष्ठी" में...........

मजहबी जूनून में आगाही खो बैठे
क्या बन पाते जब इंसानियत खो बैठे
ये कैसा रुख है कि इन्सान, इन्सान तलाशते हैं
और बेफिक्री से आदमखोर जान-खाक कर डालते हैं
आतंक को हवा में घोल जिहादी सुकून चाहते हैं
ये कायर दिल अल्लाह नहीं, नरसंहार पुकारते हैं
कत्ले-आम हो जिनकी इबादत वो दरिन्दे
क्या जाने? मानें हैं उनको भी हम अलाह के बन्दे
पर अब तस्करा नहीं हमला होगा
खून को खून और आतंक को तमाचा होगा |

अब इसे वक्ती जूनून भी कहा जाये तो क्या!!! क्यूंकि हुआ तो कुछ है ही नहीं| खैर इन्सान का नमो-निशान ही मिट गया तो दूसरे प्राणी तो सुकून से जी सकेंगे |

मै मौत के सिम्त चला
पर थम गया
सुनकर वह आवाज़
कि पहले देख तो लो
"मौत वहां है भी कि नहीं"

ज़िन्दगी सिर्फ इतनी  है
शीशा तड़क गया
गूंज अनकही है

half -baked  सिर्फ नाम से ही baked  बना रहे तो अच्छा है यदि कहीं भी आपको ऐसा लगे कि आप पाक रहें हैं तो comment -box  में पकाऊ लिख कर window बंद भी कर सकते हैं........
पर इतना भी नहीं ऊबे होंगे आप..... कि अगली बार visit  ही न करें|

5 comments:

Shekhar Kumawat said...

मै मौत के सिम्त चला
पर थम गया
सुनकर वह आवाज़
कि पहले देख तो लो
"मौत वहां है भी कि नहीं"


dar se mukabla


shekhar kumawat

Priyank Jain said...

yahan aap ise aadhyatmik arthon me bhi le sakte hain

Mayank Sharma said...
This comment has been removed by the author.
Mayank Sharma said...

mein apna ek sandeh amrita pritam ji ke shabdo se jahir karna chahunga

lekhak do tarah ke hote hai , ek jo lekhak hote hai , aur dusre , jo lekhak deekhna chahte hain. Jo hain , deekhane ka yatna unki aavashayakta nahi hoti , yah hain , aur unke apne astitva ki sacchai , sacchai se kuch bhi kam svikar nahi kar sakti .
i hope u get it what i want to say :D

Priyank Jain said...

ek bade lekhak ka naam mai bhi leleta hoon---Salman Rushdie
"duniya men , brahmand men thoda aur khulapan laiye.Mujhe yaad hai , wah waqy padhte hi mujhe khayal aaya ki -"meri samajh men kisi kala ke uddeshya aur uski prakriti ki isse achchi paribhasha nahi ho sakti."................mahan kalakaar poore brahamand ko apne baddapan ka ehsaas karaega , pratibhaheen kalakaar ko apekshakrat kam me hi santosh karna padega aur kharab kalakaar is koshish me hi nakaam rahega.lekin har kala apni chaohaddiyon , apni seemaon ko todna chahti hai.wah jo bhi aur jitna bhi hai , usme thodi matra me hi sahi , kuch jodna chahti hai , kalpna , soch , ehsaas sab najriye se.aur ant me us bade aayatan wali kala ban jana chahti hai."