Sunday, March 21, 2010

Muni Shree Ki Kavitain

मुनिश्री की कविताएँ कभी तो इतनी सरल और सहज होती हैं कि लहरों पर तैरने का-सा आभास होता है| और कभी इतनी रहस्यमय एवं गूढ़ कि सागर का अथाह विस्तार एवं गहराई भी कुछ नहीं| जीवन के जटिलतम प्रशनों का उत्तर मुनिश्री अपनी कविताओं में साधारण प्रतीकों से दे दिया करते हैं| संन्यास, अध्यात्म, सम्बन्ध,समाज, पर्यावरण, व्यक्ति, समूह आदी अनेक विषयों पर मुनिश्री कि कविताएँ, एक संन्यासी की विस्तीर्ण, गहरी और समग्र विचारशैली को इंगित करती हैं|
वैसे तो मुनिश्री की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद पहले हो चुका है, किन्तु मुनिश्री को प्रणाम स्वरुप मैंने भी ये तुच्छ प्रयास किया है|

संवेदना
वेदना सब
अपनी ही
अपूर्णता की है
और संवेदना हमें पूर्ण बनाती  है |
संवेदनशील क्षणों में
हम वेदना-मुक्त
और पूरे होते हैं|
( Senses
all agony
is of self's incompleteness
and senses
make us complete.
The time when we are
sensitive
we are free of  (pain and ) agony
and complete. )

सन्नाटा
रात के
सन्नाटे में
जब भी कोई
सूखा  पत्ता
टूटकर गिर जाता है
तब सन्नाटा
उसकी आवाज़ से
और गहरा
मालूम पड़ता है |
( Stillness
when in the
stillness of night
a dry leaf
falls
then, the stillness
deepens more
through its voice. )

भीतर 
जब आदमी 
बाहर  भीड़  से
घिर जाता है ,
तब मै जानता  हूँ
वह अपने भीतर 
कितना अकेला 
रह जाता है |
( Inside
when a man
gets thick of crowd
from outside
then I know
how much?
he is alone!!
from Inside )

डर
सागर में
तैरना
अच्छा लगता है
पर मन डरता है
कि कहीं तलहटी की
ठोस जमीन से
टकरा न जाऊं
कि कहीं लहरों में
किनारे पर
फेक न दिया जाऊं |
( Fear
to swim in the ocean
soothes
but mind fears
of getting collided
with the solid bottom
of the valley
of getting waved out
to the shore. )

The list of the books written by Munishree is available on the website of maitree samooh (www.maitreesamooh.com).




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